सामान्य विज्ञान

1.                  परमाणु के लिए सिद्धांत


डॉल्टन का परमाणु सिद्धांत:
·         परमाणु अनेक सूक्ष्मतम कणों से मिलकर बना होता हैं| जिसे परमाणु कहते हैं |
·         परमाणु अविभाज्य होता हैं|
·         एक ही तत्व के परमाणु आकार, द्रव्यमान तथा अन्य सभी गुणों में समान होते हैं|
नोट: जब से समस्थानिक रेडियो एक्टिवता की खोज हुई हैं तब से डॉल्टन के कुछ सिद्धांत अमान्य हो गए हैं|
थॉमसन का परमाणु मॉडल:
थॉमसन के अनुसार परमाणु से एक धनावेशित गोला हैं जिसके बीच बीच में इलेक्ट्रान उपस्थित रहकर उसे विद्युत उदासीन बनाये रखते हैं तथा इस गोले का आकर 10-8cm होता हैं| थॉमसन का परमाणु मॉडल प्लम-पुडिंग मॉडल भी कहलाता हैं| क्योंकि थॉमसन ने अपने मॉडल को समझाने के लिए प्लम-पुडिंग फल का उपयोग किया था|
नोट: रदरफोर्ड ने अपने एल्फा कण प्रकीर्णन के प्रयोग से इसे अमान्य घोषित किया था|
रदरफोर्ड का स्वर्ण पत्र प्रयोग:
रदरफोर्ड ने परमाणु के नाभिक की खोज की थी| उसने अपने प्रयोग में पतली सोने की झिल्ली पर एल्फा कण की बमबारी के प्रयोग किया था|
उन्हें अपने प्रयोग से ऐसा बताया जैसे लोहे का गोला कागज की पतली पन्नी से टकराकर वापस लौटा हो|
उनके प्रयोग के निष्कर्ष:
1.       परमाणु का अधिकांश भाग खोखला होता हैं|
2.       परमाणु के मध्य में अत्यंत सूक्ष्म धनावेशित भाग स्थित होता हैं| जिसे नाभिक बताया गया|
3.       परमाणु के नाभिक में जितने धनावेशित कणों की संख्या होगी उसके समान ही कक्षाओं में इलेक्ट्रान उपस्थित होगे जो परमाणु को उदासीन बनाये रखते हैं|
4.       इलेक्ट्रान परमाणु के नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं|
नोट: रदरफोर्ड अपने प्रयोग द्वारा इस समस्या का समाधान नहीं कर पाया की इलेक्ट्रान लगातार कक्षाओं में चक्कर लगायेगा तो ऊर्जा के हास के कारण इलेक्ट्रान नाभिक में समा जायेगा|
यदि इलेक्ट्रान लगातार ऊर्जा का उत्सर्जन करेगा तो प्राप्त स्पेक्ट्रम सतत होना चाहिए परन्तु ऐसा नहीं होता हैं परमाणु रेखीयस्पेक्ट्रम देते हैं|
इन सभी कमियों को दूर करने के लिए नील्स बोर ने अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया:
नील्स बोर का परमाणु मॉडल (परिकल्पनायें):
         I.            इलेक्ट्रान नाभिक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा के वृत्ताकार स्थायी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं जिन्हें ऊर्जा स्तर या कोश कहा जाता हैं|
       II.            इलेक्ट्रान उन्हीं वृत्ताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं जिनका कोणीय संवेग का पूर्ण गुणांक होता हैं|
     III.            जब इलेक्ट्रान एक ही कक्षा में चक्कर लगाते हैं तो इलेक्ट्रान ऊर्जा का अवशोषण और उत्सर्जन नहीं करते हैं| परन्तु जब वे निम्न कक्षा से उच्च कक्षा में जाते हैं तो ऊर्जा का अवशोषण करते हैं तथा उच्च कक्षा से निम्न कक्षा में आते हैं तो ऊर्जा का अवशोषण करते हैं |
    IV.            ऊर्जा का अवशोषण उत्सर्जन क्वान्टा या बण्डल के रूप में होता हैं|
4.     परमाणु की संरचना
परमाणु को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैं
         नाभिक
         बाहरी भाग
1.                   नाभिक: परमाणु का वह अत्यंत सूक्ष्म भाग जोन्युट्रोन प्रोटोन से मिलकर बनना होता हैं | न्युट्रोन प्रोटोन के सम्मिलित रूप से न्यूक्लिओन्स कहा जाता हैं|परमाणु का भार भी नाभिक रहता हैं | नाभिक में प्रोटोन पर धनावेश पाया जाता हैं जिससे नाभिक में धनावेश का उच्च घनत्व पाया जाता हैं | तथापरमाणु का कुल द्रव्यमान भी नाभिक में ही पाया जाता हैं |
परमाणु के नाभिक का आकार 10-15 मीटर होता हैं |
i.                     द्रव्यमान संख्या(A) : प्रोटोन की संख्या(P) + न्युट्रोन की संख्या (n)
परमाणु के नाभिक की त्रिज्या उनमें उपस्थित न्यूक्लिओन्स की संख्या के घनमूल के समानुपाती होती हैं |
R=R_0 A ^1/3 
जहाँ: R नाभिक की त्रिज्या
                 R_0 स्थिरांक (1.40 X 10^-13 cm)
                A न्यूक्लिओन्स की संख्या
ii.                   परमाणु क्रमांक (Z) :तत्व के नाभिक में उपस्थित कुल प्रोटोन की संख्या उस तत्व की परमाणु क्रमांक या परमाणु संख्याकहलाती हैं|
उदासीनपरमाणु के लिए परमाणु क्रमांक = इलेक्ट्रान की संख्या = प्रोटोन की संख्या
न्युट्रोन की संख्या = द्रव्यमान संख्यापरमाणु क्रमांक
2.                   बाहरी भाग: परमाणु का बाहरी भाग वह होता हैं जहाँ पर निश्चित कक्षाओं में इलेक्ट्रान चक्कर लगाते रहते हैं| इन कक्षों को ऊर्जा स्थर कहा जाता हैं| प्रथम कक्ष को K, द्वितीयकक्ष L, तृतीय कक्ष M, चतुर्थ कक्ष को N आदि से दर्शाते हैं
प्रत्येक कक्षा में इलेक्ट्रान की अधिकतम संख्या 2n2 होती हैं|
जहाँ पर n कक्षा की संख्या हैं = 1, 2, 3, 4, .
K, L, M, N कक्षों में इलेक्ट्रान की अधिकतम संख्या निम्न

कक्ष
n
2n2
इलेक्ट्रान की अधिकतम संख्या
K
1
2(1)2
2
L
2
2(2)2
8
M
3
2(3)2
18
N
4
2(4)2
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